हिंदी दिवस प्रतियोगिता
आओ मोहन बैठो दो पल
जिन राहों से तुम गुजरे हो
वो राहें सूनी सूनी हैं
इस गांव के लोगों की
पीड़ा सारी पीड़ा से दूनी हैं।
तुम ईश्वर हो ये ज्ञात मुझे
पर प्रेम को कैसे बताओगे
इन निरपराध भक्तों का मन
क्या कहकर समझाओगे।
तुम खुद बोलो क्या ये जनता
बिन तुमको देखे रह लेंगी
तुम सुखी रहोगे यही सोचकर
भले ये जीवन सह लेंगी।
जाओ मोहन इस दुनिया
का उद्धार करो
पर इन बेसुध लोगों
पर कुछ उपकार करो।
Swati chourasia
22-Sep-2022 04:25 PM
बहुत खूब
Reply
Shashank मणि Yadava 'सनम'
22-Sep-2022 04:22 AM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ
Reply
आँचल सोनी 'हिया'
22-Sep-2022 01:03 AM
Achha likha hai 💐
Reply