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हिंदी दिवस प्रतियोगिता


आओ मोहन बैठो दो पल

जिन राहों से तुम गुजरे हो
वो राहें सूनी सूनी हैं
इस गांव के लोगों की 
पीड़ा सारी पीड़ा से दूनी हैं।

तुम ईश्वर हो ये ज्ञात मुझे
पर प्रेम को कैसे बताओगे
इन निरपराध भक्तों का मन
क्या कहकर समझाओगे।

तुम खुद बोलो क्या ये जनता
बिन तुमको देखे रह लेंगी
तुम सुखी रहोगे यही सोचकर
भले ये जीवन सह लेंगी।

जाओ मोहन इस दुनिया
का उद्धार करो
पर इन बेसुध लोगों 
पर कुछ उपकार करो।





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10 Comments

Swati chourasia

22-Sep-2022 04:25 PM

बहुत खूब

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बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Achha likha hai 💐

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